खुलना

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

खुलना क्रि॰ अ॰ [ सं॰ खुड़, खुल = भेदन]

१. किसी वस्तु के मिले या जुड़े हुए भागों का एक दुसरे से इस प्रकार अलग होना कि उसके अंदर या उस पार तक आना, जाना, टटोलना, देखना आदि हो सके । छिपाने या रोकनेवाली वस्तु का हटना । अवरोध या आवरण का दुर होना जैसे, — किवाड़ खुलना, संदुक का ढ़क्कन खुलना । विशेष— आवरण और आवृत तथा अवरोधक और अवरूद्ध दोंनों के लिये इस क्रिया का प्रयोग होता है । जैसे— मकान खुलना, संदुक खुलना, ढक्कन खुलना, मोरी खुलना । संयो॰ क्रि॰— जड़ना ।—पड़ना । मुहा॰—खुलकर = बिन रूका्वट के । खुब अच्छी तरह । जैसे,— खुलकर भुख लगन: खुलकर दस्त होना । खुलकर बैठना । खुला स्थान = अनावृत्त स्थान । ऐसा स्थान जो घिरा न हो

२. ऐसी वस्तु का हट जाना या तितरबितर हों जाना जो छाए या घेरे हे । जैसे — बादल खुलना ।

३. दरार होना । शिगाफ होना । छेद हेना । फटना । जैसे — एक ही लाठी में सिर खुल गया ।

४. बाँधनेवाली या जोड़नेवाली वस्तु का हटना । बंधन का छुटना । जैसे— बेड़ी खुलना, गाँठ, खुलना, सीवन खुलना, टाँका खुलना ।

५. किसी बाँधी हुई वस्तु का छुट जाना, जैसे — धोती खुलना । घोड़ खुल गया । मुहा॰— खुलजाना = (१) गाँठ से जाता रहना । खो जाना । जैसे — आज बैठते ही (१००) उसके भी खुल गए । (२) स्पष्ट हे जाना । छिपा न रहना । प्रकट हो जाना । उ॰— वाह ! सीधापन दो चार दिन में खुल जाएगा ॰— फिसाना॰ भा॰

३. पृ॰ १४१ ।

६. किसी क्रम का चलना या जारी होना । जैसे,— तनखाह खुलना ।

७. ऐसी वस्तुओं का तैयर होना, जो बहुत दुर तक लकीर के रूप में चली गई हों और जिसपर किसी वस्तु का आना जाना हो । जैसे, — सड़क खुलना । नहर खुलना । उ॰— यहाँ से रेल की एक नई लाइन खुलनेवाली है ।

८. ऐसे नए कार्य का आरंभ होना जिसका लगाव सर्वसाधारण या बहुत लोगों के साथ रहे । जैसे,— कारखाना खुलना । स्कूल खुलना, दुकान खुलना ।

९. किसी कारखाने, दूकान, दफ्तर या और किसी कार्यलय का नित्य सका कार्य आरंभ होना । जैसे— अब तो दुकान खुल गई होगी; जाओ कपड़ा ले आओ ।

१०. किसी ऐसी सवारी का रवाना हो जाना, जिसपर बहुत से आदमी एक साथ बैठें । जैसे,— नाव खुलना । रेलगाड़ी खुलना ।

११. किसी गुढ़ या गुप्त बात का प्रगट हो जाना । जैसे, — (क) अब तो यह बात खुल गई, छिपाने से क्या लाभ, (ख) इसका अर्थ कुछ खुलता नहीं । मुहा॰—खुले आम, खुले खजाने, खुले बाजार = सब के सामने । सब की जान में । छिपाकर नहीं । प्रकट में ।

१२. अपने मन की बात साफ साफ कहना । भेदल बाताना । जैसे,— (क) तुम ते कुछ खुलते ही नही, हम तुम्हारा हाल कैसे जानें ।(ख) मैं जब उससे खूब मिलकर बात करने लगा, तब वह खुल पड़ा । संयो क्रि॰—पड़ाना । मुहा॰— खुलकर = बेधड़क । साफ साफ । जैसे — जो कहना हो खुलकर कहो । खुल खेलना = लज्जा या कलंक का भय छोड़कर कोइ काम सबके सामने करना । उ॰— जब मेरे सामने तुम्हारा यह हाल है तो वहाँ ... तो और भी खुल खेलोगे । — सैर॰, पृ॰ २० ।

१३. — सोहावना जाना पड़ता । चटकीला लगता । देखने में अच्छा लगना । सुशोभित बोना । खिलना । सजान । जैसे— यह टोपी सफेद कपड़े पर खूब खुलती हैं । उ॰— तेरे श्याम बिंदुलुया बहुत खुली । गोरे गोरे मुख पर श्याम बिदुलिया नैनन में य्य़ारे की घुली ।— भारतेंदु ग्रं,

१. पृ॰ ३८६ । मुहां॰— खुलता रंग = हलका सोहावना रंग । वह रंग जो बहुत गहरा न हो ।