खोंसना क्रि॰ स॰ [देश॰ या सं॰ कोश + ना (प्रत्य॰) ] किसी वस्तु को कहीं स्थिर रखने के लिये उसका कुठ भाग किसी दूसरी वस्तु में घुसेड़ देना । अटकाना । उ॰—सखी री मुरली लीजै चोर । कबहूँ कर कबहूँ अधरन पर कबहूँ कटि में खोंसत जोर ।—सूर (शब्द॰) ।