गँड़रा

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

गँड़रा संज्ञा पुं॰ [सं॰ गणडाली] [स्त्री॰ गँडरी]

१. मूँज की तरह की एक घास जो तर जमीन में होती है । विशेष—इसकी पत्तियाँ आध अंगुल चौड़ी और हाथ डेढ़ हाथ लंबी होती हैं । यह उँचाई में दी फुट से पाँच छह फुट तक होती है । इसके डंठल के बीच से डेढ़ दो हाथ लंबी पतली सींक निकलती है जो सूखने पर सुनहले रंग की ही जाती है । सींक के सिरे पर जीरे लगते हैं । ये जीरे कुआर के महीने में फूटते हैं । पूस तक यह धास सूखने लगती है । किसान हरी सींकी को निकाल लेते हैं और उन्हें झाड़ू बनाने और डब्बे, पिटारियाँ आदि बुनने के काम में लाते हैं । इसे फागुन, चैत में लोग काटते हैं और इसके डंठलों से छप्पर आदि छाते हैं । इसकी चटाइयाँ भीं बनती हैं । इसकी जड़ में सोंधी सहक होती है और वह खस कहलाती है । खस की टट्टियाँ बनती हैं तथा इससे इत्र निकाला जाता है ।

२. एक धान का नाम जो भादों कुआर में तैयार होता है ।