गंज
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]गंज ^१ संज्ञा पुं॰ [ सं॰ कञ्ज या खञ्ज]
१. एक रोग का नाम जिसमें सिर के बाल उड़ जाते हैं और फिर नहीं जमते । चाईं । चँदलाई । खल्वाट । बुर्का ।
२. सिर का एक रोग जिसमें सिर में छोटी छोटी फुंसियाँ निकलती रहती है और जल्दी अच्छी नहीं होतीं । बालखोर ा गंज ^२ संज्ञा स्त्री॰ [फा॰, सं॰ गञ्ज]
१. खाजाना । कोष ।
२. ढ़ेर । अंबार । राशि । अटाला । क्रि॰ प्र॰—लगाना ।
३. समूह । झुँड़ । ज॰,—कै निदरहु कै आदरहु सिंहंहि स्वान सियार । हरष बिषाद न केसरिहि कुंजर गंजनिहार ।— तुलसी (शब्द॰) ।
४. वह स्थान जहाँ अन्न आदि रखा जाय । गल्लाखाना अंबारखाना । कोठी । भंड़ार ।
५. गल्ले की मंड़ी । गोला । हाट । बाजर । मुहा॰—गंज ड़ालना = बाजार लगाना । मंड़ी आबाद करना ।
६. वह आबादी जिसमें बनिए बसाए जाते हैं और बाजार लगता है । जैसे, —पहाड़गंज, रायगंज ।
७. मद्यपात्र
८. मदिरालय । कलवरिया ।
९. वह चीज जिसमें बहुत सी काम की चीजों ए क साथ एकत्र हों । जैसें;—एक बरतन दो गगरे या बाल्टी के आकार का होता है औरौ जिसमें रसोई वनाने के बहुत से बरतन होते है, गंज कहलाता है । इसी प्रकार वह चाकू जिसमें चाकू कैची मोचने आदि बहुत सी चोजें होती हैं, गंज कहलाता है । यौ॰—गंजगुठारा, गंजगुबारा = दे॰ 'गंजगोला' । गंजगोला । गंजचाकू ।
गंज ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ गञ्ज]
१. अवज्ञा । तिरस्कार ।
२. गोशाला । गोठ [को॰] ।
गंज ^४ संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक मोठी लता जिसमें नीचे की और झुकी हुई टहनियाँ निकलती है । विशेष—इसकी पत्तियाँ सीकों में लगती हैं और चार से आठ इंच तक लंबी, सिरे की ओर चौड़ी, दलदार और चिकनी होती हैं, इसमें पाँच सात इंच लंबी, एक इच मोटी फलियाँ लगती हैं, जिनपर रोंई होती हैं । टहनियों से रोशा निकलता है और पत्तियाँ चौपायों की खिलाई जाती हैं । यह लता जंगल के पेड़ों को बहुत हानि पहुँचाती है और देहरादून से लेकर गोर- खपुर और बुँदेलखंड़ तक पाई जाती है । इसे गोंज भी कहते हैं ।