गढ़ना
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]गढ़ना ^१ क्रि॰ स॰ [सं॰ घटन, प्रा॰ घडन]
१. किसी सामग्री की काट छाँट या ठोंक ठाँककर कोई काम की वस्तु बनाना । सुघाटित करना । रचना । जैसे, = (क) सोनार दूकान पर गहने गढ़ता है । (ख) गढ़े कुम्हार, भरे संसार । उ॰—तुलसी रही है ठाढ़ी, पाहन गड़ी सी काढ़ी; न जानै कहाँ ते आई कौन की को ही ।—तुलसी (शब्द॰) ।
२. ठोंक ठाँककर सुडौल करना । तोड़कर या छील छालकर दुरुस्त करना । जैसे—इसमें गढ़ गढ़कर ईटें लगाई जायँगी ।
३. बात बनाना । कपोल—कल्पना करना । झूठमूठ की बात खड़ी करना । जैसे,—गढ़ी हुई बात । बहाना गढ़ना । कथा गढ़ना, इत्यादि । मुहा॰—गढ़ गढ़कर बातें करना या बनाना = झूठमूठ की कल्पना करके बात कहना । नमक मिर्च लगाकर बातें करना । उ॰— तू मोही को मारन जानति । उनके चरित कहा कोउ जानै, उनहिं कही तू मानति । कदम तीर के मोहि बुलायो गढ़ि गढ़ि बातैं बानाति । मटकति गिरी गागरी सिर ते अब ऐसी बुध ि ठानति ।—सूर (शब्द॰) । गढ़ छोलकर बोलना = नमक मिर्च लगाकर कहना । सजा सवाँरकर कहना । उ॰—सजि प्रतीति बहुविधि गढ़ि छोली । अवध साढ़साती तब बोली ।— मानस, २ । १७ ।
४. मारना । पीटना । ठोंकना । जैसे,—तुम खूब गढ़ जाओगे, तब मानोगे ।
गढ़ना ^२ क्रि॰ स॰ [सं॰ घटन] प्रस्तुत करना । उपस्थित करना । उ॰—आछै सँजोग गोसाईं गढ़े ।—जायसी (शब्द॰) ।