गथ

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

गथ पु संज्ञा पुं॰ [सं॰ ग्रन्थ, प्रा॰ गत्थ]

१. पूँजी । जमा । गाँठ का धन । उ॰—(क) अति मलीन वृषभानुकुमारी । हरि श्रम जल अंतर तनु भींजे ता लालच न धुवावति सारी । अधोमुख रहति उरध नहिं चितवति ज्यों गच हारो थकित जुआरी ।— सूर (शब्द॰) । (ख) बाजार चारु न बनइ बरनत वस्तु बिनु गथ पाइये ।—तुलसी (शब्द॰) ।

२. माल । उ॰—मेरे इन नयनन इते करे । मोहन बदन चकोर चंद्र ज्यों इकटक तें न टरे ।...... रही तडी खिजि लाज लकुट लै एकहु डर न डरे । सूरदास गथ खोटो काहे पारखि दोष धरे ।—सूर (शब्द॰) ।

३. झुड । गरोह ।