गद्य

विक्षनरी से

उसकी सुदृढ़ता को धारण करने वाली पृथ्वी इसी ब्राह्मण की राजनीति है। यदि वह शक्ति एक क्षण के लिए अलग हो जाये तो हिमाद्रि इतने वेग से नीचे गिरेगा कि वह अपने साथ समीपवर्ती वृक्षों को भी लेकर समुद्रतल में चला जाएगा।

हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

गद्य ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. वह लेख जिसमें मात्रा और वर्ण की संख्या और स्थान आदि आधार पर विराम या यति का कोई नियम या बंधन न हो । वार्तिक । वचनिका ।

२. काव्य के दो भेदों में से एक जिसमें छंद और वृत्त का प्रतिबंध नहीं होता और बाकी रस, अलंकार आदि सब गुण होते हैं । विशेष—अग्निपुराण में गद्य तीन प्रकार का माना गया है— चूर्णक, उत्कलिका और वृत्तगंधि । चूर्णक वह है जिसमें छोटे छोटे समास हों, उत्कलिका वह है जिसमें बडे़ बडे़ समस्त पद हों, और वृत्तगंधि वह है जिसमें कहीं कहीं पद्य का सा आभास हो । जैसे,—हे बनवारी, कुंजविहारी, कृष्णमुरारी, यसोदानंदन हमारी विनती सुनो ।' वामन ने भी अपने वामन- सूत्र में ये ही तीन भेद माने हैं । विश्वनाथ महापात्र ने साहित्यदर्पण में एक और भेद मुक्तक माना है जिसमें कोई समास नहीं होता । ये भेद तो पदयोजना या शैली के अनुसार हुए । साहित्यदर्पण के अनुसार गद्यकाव्य दो प्रकार का होता है—(क) कथा और । (२) आख्यायिका । कथा वह है जिसमें सरस प्रसंग हो, सज्जनों और खलों के व्यवहार आदि का वर्णन हो और आरंभ में पद्यबद्ध नमस्कार हो । आख्यायिका में केवल इतनी विशेषता होती है कि उसमें कवि के वंश आदि का भी वर्णन होता है । गद्य के विषय में प्राचीनों के ये सब विवेचन आजकल उतने काम के नहीं हैं ।

३. संगीत में शुद्ध राग का एक भेद ।

गद्य ^२ वि॰ बोलने, कहने या उच्चारण के योग्य [को॰] ।