गर

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

गर ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. एक प्रकार का बहुत कड़ुवा और मादक रस जिसका व्यवहार प्राचीन काल में होता था ।

२. एक रोग जिसमें घिग्घी बँध जाता है और मू्र्च्छा आती है ।

३. रोग । बीमारी ।

४. विष । जहर ।

५. वत्सनाभ । बछनाग ।

६. ज्योतिष में ग्यारह करणों में से पाँचवाँ करण ।

७. निगलना । घोंटना (को॰) ।

गर पु † संज्ञा पुं॰ [हिं॰ गल] गला । गरदन । उ॰—होती जौ अजान तौन जानती इतीक बिथा मेरे जिस जान तेरो जानिबो गरे परयो ।—देव (शब्द॰) ।

गर ^३ प्रत्य॰ [फा, ने॰] (किसी काम को) बनाने या करनेवाला इसका प्रयोग केवल समस्त पदों के अंत में होता है । जैसे— सौदागर, कारीगर, बाजीगर कलईगर, कुंदीगर आदि ।

गर ^४ अव्य॰ [फ॰ अगर का संक्षिप्त रूप] यदि । जो । अगर ।