गवय

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

गवय संज्ञा पुं॰ [सं॰] [स्त्री॰ गवयी]

१. नील गाय । उ॰—इधर उस नाद को सुनकर गवय और गज भी भीत होकर पलीत के भाँति चिक्कार मारकर भागते हैं ।—श्यामा॰, पृ॰ ७ ।

२. एक बंदर जो रामचंद्र जी की सेना में था ।

३. एक छंद का नाम जिसके प्रथम चरण में १९ मात्राएँ होती हैं और ११ मात्राओं पर विराम होता है । दूसरे चरण में दोहा होता है । जैसे—सुरभी केसर बसै नील नद माँह । मनौ नगर सुग्रीव को सोहत सुंदर छाँह ।

४. गवय संज्ञा स्त्रीलिंग अर्थ : गाय
हिन्दू वेदों में अनेक प्रसंगों में गाय के लिए भी शब्द गवय का प्रयोग किय्या मिलता है और गाय से मिलने वाले उत्पादों (दूध, दही, मक्खन, पनीर आदि) को समूहिक रूप में गव्य शब्द प्रयोग हुआ है । चूंकि प्राचीन संस्कृत में संज्ञाओं का सृजन गुणों के अनुसार किया जाता रहा है उदाहरण के लिये इस से अलग अनेक नाम जैसे अष्टावक्र अर्थात 8 विकृतियों वाला, द्रोणाचार्य जिनका जन्म द्रोण में हुआ जिस कारण उनका नाम द्रोण पड़ा ऐसे में जो लोग गवय को नील गाय कहते है उनके लिए सोचने वाली बात है कि नील गाय हिंदी में भी 2 शब्दो का प्रारूप है जिसमे नील उसके रंग के कारण और गाय इसलिए क्योकि हिरण प्रजाति का ये जानवर गाय से भी काफी मिलता जुलता है ऐसे में तथ्यों का अवलोकन किया जाए तो स्पष्ट समझ मे आता है कि आज की हिंदी में व्याकरणीय प्रबन्दन संस्कृत भाषा के अनुसार ही पाए जाते हैं ऐसे में बिना खास गुण यानी नीलापन लिए हुए विकसित चमड़ी के जिक्र किये हर उल्लेख अपूर्ण बन जाएगा। रंग की विवेचना के बिना एकल रूप में गवय का प्रयोग निसंदेह रूप से गाय के लिए ही है।

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