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गाँठ

विक्षनरी से


प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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गाँठ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ ग्रन्थि, पा॰ गंठि] [विं॰ गँठीला]

१. रस्सी, डोरी तागे आदि में पड़ी हुई मुद्धी की उलझन जो खिंचकर कड़ी और दृढ़ हो जाती है । वह कड़ा उभार जो तागे, रस्सी, डोरी आदि में उनके छोरों को कई फेरे लपेटकर या नीचे ऊपर निकालकर खींचने से बन जाता है । गिरह । ग्रंथि । जैसे,—रस्सी में गाँठ पड़ गई है । क्रि॰ प्र॰—खोलना ।—डालना ।—देना ।—पड़ना ।— बाँधना ।—लगाना । यौ॰—गाँठ गँठीला = गाँठों से भरा हुआ । गाँठवाला । जिसमें उलझन और गाँठ हो । मुहा॰—गाँठ खुलना = उलझन मिटना । किसी भारी समस्या का समाधान होना । कोई भारी प्रश्न हल होना । गाँठ खोलना या छोरना = उलझन मिटाना । अड़चन दूर करना । कठिनाई मिटाना । उ॰—कहनि रहनि एक विरति विवेक नीति वेद बुधसंमत पथन निरवान की । गाँठि विनु गुन की कठिन जड़ चेतन की छोरी अनायास साधु सोधक अपान की ।—तुलसी ग्रं॰, पृ॰ ३१५ । (मन या हृदय की) गाँठ खोलना = (१) खोलकर कोई बात कहना । मन में कोई बात गुप्त न रखना । मन में रखी हुई बात कहना । (२) अपनी भीतरी इच्छा प्रकट करना । (३) अपना हौसला निकलना । लालसा पूरी करना । (मन में) गाँठ गकड़ना या करना = भेद मानना । अतर रखना । बुरा मानना । खिंचा रहना । बैर मानना । कोना रखना । गाँठ पर गाँठ पड़ना = (१) उलझन बढ़ती जाना । किसी बात का उत्तरोत्तर कठिन होता जाना । मामला पेचीला होता जाना । (२) मनमोटाव बढ़ता जाना । द्वेष बढ़ता जाना । मन में गाँठ = चित्त में बुरा भाव । द्वेष भाव । वैर । मन में गाँठ रखना = जी में बुरा मानना । वैर मानना । मन या हृदय में गाँठ पड़ना = आपस के संबंध में भेद पड़ना । मनमोटाव होना । वैर होना । द्वेष होना । उ॰— (क) मन को मारों पटकि के टूक टूक उड़ि जाय । टूटे पाछे फिर जुरै, बीच गाँठि पड़ि जाय ।—कबीर (शब्द॰) । (ख) दृग उरझन टूटत कुटुम जुरत चतुर सँग प्रीति । परति गाँठ दुर्जन हिये दई नई यह रीति ।—बिहारी (शब्द॰) ।

२. अंचल, चददर या किसी कपड़े की खूँट में कोई वस्तु (जैसे, रुपया) लपेटकर लगाई हुई गाँठ । उ॰—राम गाइ औरन समुझावै हरि जाने बिन विकल फिरैं । एकादशी व्रतौं नहिं जानै ज्ञान गमाये मुगुध फिरै ।—कबीर (शब्द॰) । मुहा॰—किसी की गाँठ कटना = (१) गाँठ में बँधी वस्तु का चोरी जाना । जेब कतरा जाना । (२) सौदे में जट जाना । अधिक दाम दे देना । ठगा जाना । गाँठ कतरना या काटना = (१) गाँठ काटकर रुपया निकाल लेना । जेब कतरना । (२) मूल्य से अधिक लेना । लूटना । ठगना । गाँठ करना = (१) संग्रह करना । इकट्ठा करना । अपने पास रख लेना । उ॰—रहा द्रव्य तब कीन न गाँठी । पुनि कत मिलैं लच्छ जो नाठी ।—जायसी (शब्द॰) । (२) याद रखना । गाँठ का = पास का । पल्ले का । जैसे—तुम्हारी गाँठ का रुपया लगे तो मालूम हो । गाँठ का पूरा = धनी । मालदार । जैसे— गाँठ का पूरा, मति का हीन । गाँठ खोलना = थैली या जेब से रुपया निकालना । पास का खर्च करना । गाँठ जोड़ना = विवाह आदि के समय स्त्री पुरुष के कपड़ों के पल्ले को एक में बाँधना । गँठजोड़ा करना । ग्रंथिबंधन करना । किसी के साथ गाँठ जोड़ना = किसी के साथ ब्याह करना । गाँठ में = पल्ले में । पास में । जैसे—गाँठ में कुछ है कि यों ही बाजार चले । उ॰—राजा पदुमावति सों कहा । साँठ नाठ कछु गाँठ न रहा ।—जायसी (शब्द॰) । (कोई बात) गाँठ में बाँधना = अच्छी तरह याद रखना । स्मरण रखना । सदा ध्यान में रखना । उ॰—कहल हमारा गाँठी बाँधो, निसि बासरहि होहु हुसियारा । ये कलि के गुरु वड़ परपंची, डारि ठगौरी सब जग मारा ।—कबीर (शब्द॰) । गाँठ से = पास से । जैसे—गाँठ से लगाना पड़े तो मालूम हो ।

३. गठरी । बोरा । गट्ठा । जैसे—गेहूँ की गाँठ, चावल की गाँठ । मुहा॰—गाँठ करना = (१) गाँठ में बाँध लेना । (२) बटोरना । जमा करना ।

४. अंग का जोड़ । बंद । जैसे—पैर की गाँठ, हाथ की गाँठ, उँगली की गाँठ । मुहा॰—गाँठ उखाड़ना—किसी अंग का अपने जोड़ पर से हट जाना । जोड़ उखड़ना ।

५. ईख, बाँस आदि में थोड़े थोड़े अंतर पर कुछ उभड़ा हुआ कड़ा स्थान जिसमें गंडा या चिह्न पड़ा रहता है और जिसमें से कनखे निकलते है । पोर । पर्व । जोड़ ।

६. गाँठ के आकार की जड़ । ऊँटी । गुत्थी । जैसे—हल्दी की गाँठ ।

७. घास का वह बोझ जिसे एक आदमी उठा सके । गट्ठा ।

८. एक गहना जो कटोरी के आकार का होता है और जिसकी बारी में छोटे छोटे घुँघरू लगे रहते हैं । इसे रेशम में गूँथकर स्त्रियाँ हाथों की कुहनी में लटकाती है ।