गाड़

विक्षनरी से


हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

गाड़ संज्ञा स्त्री॰ [स॰ गर्त, प्रा॰, गड्ढ, मिलाओ अ॰ गार]

१. गड़हा । गड्ढा । उ॰— (क) रुधिर गाड़ भरि-भरि जमेउ ऊपर ऊपर धूरि उड़ाइ । जिमि अँगार रासीन पर मृतक धूम रह छाइ ।— तुलसी (शब्द॰) । (ख) वेई गाड़ि गाड़ै परी उपटयो हार हियै न । आन्यो मोरि मतंग मनु मानि गरेरनि मैन ।—बिहारी (शब्द॰) । (ग) चित चंचल जग कहत है मो मति सो ठहरै न । या ठोढी़ की गाड़ परि थिर होइ सो निकरै न ।—श्रृ॰ सत॰ (शब्द॰) ।

२. पृथिवी के अंदर खोदा हुआ वह गड्ढा जिसमें अन्न रखा जाता है ।

३. कोल्हाड़ में वह गड़्ढा जिसमें बचा खुचा रस निचोड़ने के लिये ईख की खोई ड़ालते हैं और ऊपर से पानी छिड़क देते हैं । इसके चारों ओर हाथ डेढ़ हाथ ऊँची दीवार होती है और अंदर से यह खूब लिपा पुता रहता है । इसके एक ओर छोटा सा छेद होता है जिसमें से होकर खोई से रस निचुड़ता है ।

४. नील आदि के कारखाने में वह गड्ढा जिसमें पानी बरा रहता है ।

५. कुएँ की ढाल । भगाड़ ।

६. वह छिछला गड्ढा जिसमें से पानी शीघ्र बह जाता है । खत्ता ।

७. खेत की मेंड़ । बाढ ।