गान
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]गान संज्ञा पुं॰ [सं॰] [वि॰ गेय, गेतव्य]
१. गाने की क्रिया । संगीत । गाना । यौ॰—गानाविद्या = संगीत कला ।
२. गाने की चीज । गीत ।
३. ध्वनि । आवाज । शब्द (को॰) ।
४. स्तवन । प्रशंसन । बखान (को॰) ।
५. गमन । चलना [को॰] ।
गान ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ गोणी]
१. टाट, कंबल या चमड़े आदि की बनी हुई वह खुरजी किसमें दो ओर अनाज आदि भरने का स्थान होता है और जो भरकर बैलों की पीठ पर रखी जाती है । लदने पर इसका एक भाग बैल के एक तरफ और दूसरा दूसरी तरफ रहता है । उ॰—भरी गोन गुड़ तजौ तहाँ से साँझै भागै ।—पलटू, भा॰ १, पृ॰ १०७ ।
२. साधारण बोरा । खास बोरा ।
३. टाट का कोई थैला ।—(लश॰) ।
४. अनाज की तौल जौ १६ मानी (२५६ सेर) की होती है ।