गालव

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

गालव संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. एक ऋषि का नाम । विशेष—महाभारत के अनुसार ये विश्वामित्र जी के अंतेवासी थे । विद्या समाप्त कर समावर्तन के समय इन्होंने अपने गुरु विश्वामित्र जी ने इनके हठ से चिढ़कर आठ सौ श्यामकर्ण घोड़े माँगे । गालव जी ने राजा ययाति के पास जाकर उनसे आठ सौ श्यामकर्ण घोड़ों के लिये याचना की; पर ययाति के यहाँ भी आठ सौ श्यामकर्ण घोड़ें नहीं थे; अतः ययाति ने उन्हें अपनी कन्या, जिसका नाम माधवी था, देकर कहा— गालव जी, आप इस कन्या को ले जाइए; और जो दो सौ श्यामकर्ण घोड़े दे, उसे इससे एक पुत्र उत्पन्न कर लेने दीजिए । इस प्रकार आप आठ सौ श्यामकर्ण घोड़े लेकर अपने गुरु को गुरुदक्षिण दे दीजिए । गालव जी माधवी को लेकर हर्य्यशव राजा के पास गए; और हर्य्यशव ने दो सौ श्याम कर्ण घोड़े देकर उससे एक संतान उत्पन्न की । इसी तरह वे उसे दिवोदास और उशीनर के पास ले गए; और उन लोगों ने भी दो दो सौ घोड़े देकर उस कन्या से एक एक पुत्र उत्पन्न किया । अब गालव जी को कोई राजा ऐसा न मिला जो उन्हें शेष दो सौ घोड़े देकर माधवी से एक और पुत्र उत्पन्न करता । अंत को गलाव जी छह सौ घोड़े और माधवी को लेकर विश्वामित्र जी के आश्रम पर लौट गए और उन्होंने उनसे सब हाल कहा । विश्वामित्र जी ने उन छह सौ घोड़ों को ले लिया और उस कन्या से एक पुत्र उत्पन्न कर गालव जी को गुरुदक्षिणा के ऋण से मुक्त किया । हरिवंश में इन्हें विश्वा- मित्र जी का पुत्र लिखा है ।

२. एक प्रसिद्ध वैयाकरण जिनका मत पाणिनि ने अष्टाध्यायी में उद्धृत् किया है ।

३. लोध का पेड़ । श्वेत लोध्र ।

४. तेंदु का पेड़ ।

५. एक स्मृतिकार ।