गाहना
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]गाहना क्रि॰ स॰ [सं॰ गाहन = अवगाहन]
१. डूबकर थाह लेना । अवगाहन करना ।
२. मथना । विलोड़ना । हलचल मचाना । क्षुब्ध करना । उ॰—ब्रजराज तिनके और तौ ब्रजराज के परताप । जिन साह के तल गाहि के निज साहिबी करि थाप ।—सूदन (शब्द॰) ।
३. धान आदि के डंठल को दाँते समय एक डंडे से उठाकर गिरना, जिसमें दाना नीचे झड़ जाय । ओहना । उ॰—कहो तुम्हारो लागत काहे । कोटिन जतन कहौ जो ऊधो नाहिं बककिहौ वाहे । वाहे तो अपने जी मेरी तू सत ले मन चाहे । । यह भ्रम तो अबहीं मिटि जैहैं ज्यों पयार के गाहे । काशी के लोगन लै सिखयो जो समुझो या माहे । सूर श्याम बिहरत ब्रज अंदर जीजतु है मुख चाहे ।—सूर (शब्द॰) ।
४. जहाज आदि की दरारों में सन आदि ठूसकर भरना । कालपट्टी करना ।—(जहाज) ।
५. खेत में दूर दूर पर जोताई करना ।
६. घूमना । फिरना । चलना । उ॰—ब्रज बन गैल गन्यारनि गाहत । लरत फिरत ज्यों ज्यों सुख चाहत ।—घनानंद, पृ॰ १९० ।