गीतिकाव्य संज्ञा पुं॰ [सं॰] ऐसा काव्य जो गीति प्रधान अथवा गेय हो और आत्मपरक हो । उ॰—गीति काव्य और गेय काव्य दोनों एक ही वस्तु नहीं हैं ।—पौद्दार अभि॰ ग्रं॰, पृ॰ १६७ ।