गुग्गुल

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

गुग्गुल संज्ञा पुं॰ [सं॰] एक काँटेदार पेड़ । विशेष—यह सिंध, काठियावाड़, राजपूताना, खानदेश आदि में होता है । इस पेड़ के छिलके को जाड़े के दिनों में स्थान स्थान पर छील देते हैं जिससे उन स्थानों से कुछ हरापन लिए भूरे रंग का गोंद निकलता है । यही गोंद बाजार में गुग्गुल के नाम से बिकता है । यह पेड़ वास्तव में मरुभूमि का है इससे अरब और अफ्रीका में इसकी बहुत सी जातियाँ होती हैं । बलसाँ और बोल (मुर) नाम के गोंद जो मक्का और अफ्रीका से आते हैं पश्चिमी गुग्गुल ही से निकलते हैं । इनमें से करम या बंदर करम उत्तर और मीटिया या चिनाई बोल मध्यम होता है । भारतवर्ष में गुग्गल की चलान विशेषकर अमरावती से होती है । बंबई में इसे गारे में भी मिलाते हैं जो दर्जबंदी के काम में आता है । गुग्गुल को चंदन इत्यादि के साथ मिलाकर सुगंध के लिये जलाते हैं । वैद्यक में गुग्गुल वीर्यजनक, बलकारक, टूटी हड्डी जोड़नेवाला, स्वरशोधक तथा वातव्याधि और कोढ़ को दूर करनेवाला माना जाता है । राजनिघंटु में गुग्गुल के रस के अनुसार पाँच भेद किए हैं । प्रयोगामृत में गुग्गुल की परीक्षाविधि इस प्रकार लिखी है, जो आग में गिरने से जल जाय, गरमी पाकर पिघल जाय, और गरम जल में डालने से घुल जाय वह गुग्गुल उत्तम होता है । औषध मै नया गुग्गुल काम में लाना चाहिए, पुराना नहीं । खाने के लिये गुग्गुल प्रायः शोधकर काम में लाया जाता है । इसे कई प्रकार से शोधते हैं । कोई गिलोय यचा त्रिफला के काढ़े अथवा दूध में पकाते हैं, कोई दशमूल के गरम काढ़े में डालकर उसे छान लेते हैं और फिर धूप में सुखा देते हैं । पर्या॰—कालनिर्यास । महिषाक्ष । पलंकष । जटायु । कौशिक । देवधूप । शिवपुर । कुंभ । उलूखलक । सर्वसह । उष । कुंती । पनद्विष्ट पुट । वायुध्न । रूक्षगंधक ।

२. एक बड़ा पेड़ जो दक्षिण में कोंकण आदि प्रदेशों में होता है । विशेष—इसके पत्ते जब तक नए रहते हैं प्याजी रंग के दिखाई पड़ते हैं । पच्छिमी घाट के पहाड़ों पर इन पेड़ों की बड़ी शोभा दिखाई पड़ती है । इनमें से एक प्रकार की राल या गोंद निकलता है जौ दक्षिण का काला डामर कहलाता है । यह राल बारनिश बनाने के काम में विशेष आती है । पेड़ को राल धूप और मंद धूप भी कहते है ।

३. सलई का पेड़ जिससे राल या धूप निकलती है ।