गुरदा

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

गुरदा संज्ञा पुं॰ [फा॰ सं॰ गोर्द]

१. रिढ़दार जीवों के अंदर का एक अंग जो पीठ और रीढ़ के दोनों ओर कमर के पास होता है । विशेष— इसका रंग लाली लिए भूरा और आकार आलू का सा होता है । इसके चारो ओर चरबी मढी़ होती है । साधारणतः जीवों में दो गुरदे होते हैं जो रीढ़ के दोनों ओर स्थित रहते हैं । शरीर में इनका काम पेशाब को बाहर निकालना और खून को साफ रखना है । यदि इनमें किसी प्रकार का दोष आ जाय तो रक्त बिगड़ जाता और जीव निर्बल हो जाता है । मनुष्य में बाँया गुरदा कुछ ऊपर की ओर और दारिना कुछ नीचे की ओर हटकर होता है । मनुष्य के गुरदे प्रायः ८—९अंगुल लंबे, ५अगुल चौडे़ और २अंगुल मोटे होते हैं ।

२. साहस । हिम्मत । जैसे—(क) वह बडे़ गुरदे का आदमी है । (ख) यह बडे़ गुरदे का काम है ।

३. एक प्रकार की छोटी तोप ।

४. लोहे का एक बडा़ चमचा या करछा जिससे गुड़ बनाते समय उबलता हुआ पाग चलाते हैं ।