गुरुत्व

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

गुरुत्व संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. भारीपन । वजन । बोझ । विशेष— पदार्थ विज्ञान के अनुसार पदार्थों का गुरुत्व वास्तव में उस वेग या शक्ति की मात्रा है जिससे वह पृथ्वी की आकर्षण शक्ति द्वारा नीचे की ओर जाता है । वेग की इस मात्रा में उस अंतर का भी विचार कर लिया जाता है जो अक्ष पर घूमती हुई पृथ्वी के उस वेग के कारण पड़ता है जिससे वह पदार्थों को (केंद्र से) बाहर हटाती है । अतः आकर्षण वेग की मात्रा समुद्रतल और क्रांति वृत्त पर ३

८५.

१. और ध्रुव पर ३

८७. १ इंच प्रति सेकंङ़ होती है । यह गुरुत्व वेग समुद्र- तल पर की अपेक्षा पहाङों पर कुछ कम होता है, अर्थात् उसमें प्रति दो मील की ऊँचाई पर सहस्त्रांश की कमी होती जाती है । किसी पदार्थ का वजन जितना क्रांतिवृत्त पर तौलने से होगा उससे ध्रुव पर उसे ले जाकर तौलने से १/१८१ वाँ भाग अधिक रहेगा । वैशेषिक सुत्र में रूप रस आदि केवल १७ गुण बतलाए हैं पर प्रशस्तपाद भाष्य में गुरुत्व, द्रवत्व आदि ६ गुण और बतलाए हैं । गुरुत्व को मूर्त और सामान्य गुण माना है, अर्थात् ऐसा गुण जो पृथ्वी, जल, वायु आदि स्थूल या मूर्त द्रव्यों में पाया जाता है तथा जो अनेक ऐसे द्रव्यों में रहता है । प्राचीन नैयायिक केवल जल और मिट्टी में ही गुरुत्व मानते थे । उनके मत से तेज, वायु आदि में गुरुत्व नहीं । सांख्य मतवाले गुरुत्व को तमोगुण का धर्म मानते हैं, सत्व या रजोगुण में गुरुत्व नहीं मानते । आजकल की परीक्षाओं द्वारा वायु आदि का गुरुत्व अच्छी तरह सिद्ध हो गया है ।

२. महत्व । बड़प्पन ।

३. गुरु का काम ।