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गूँगा

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

गूँगा ^१ वि॰ [फ़ा॰ गुंग = जो बोल न सके] [वि॰ स्त्री॰ गूँगी] जो बोल न सके । जिसके मुँह से स्पष्ट शब्द न निकले । जिसे वाणी न हो । मूक ।

गूँगा ^२ संज्ञा पुं॰ वह मनुष्य या प्राणी जो बोल न सके । मुहा॰—गूँगा का गुड़ होना= ऐसी बात होना जिसका अनुभव हो पर वर्णन न हो सके । ऐसी बात जो कहते न बने । उ॰— अमृत कहा अमित गुन प्रगटै सो हम कहा बतावैं । सूरदास गूँगे के गुर ज्यों बूझति कहा बुझावै—सूर (शब्द॰) । विशेष—गूँगा मनुष्य गुड़ का स्वादा अनुभव तो करता है पर उसे प्रकट नहीं कर सकता । गूँगे का गुड़ खाना = गूँगे के द्वारा गुड़ का खाया जाना । उ॰— (क) नैनहिं ढुरहिं मोति औ मूँगा । जस गुर खाय रहा है गूँगा ।—जायसी (शब्द॰) । (ख) ज्यों गूँगा गूर खाइकै स्वाद न सके बखानि ।—तुलसी (शब्द॰) । विशेष—बहुत लोगों ने विशेषकर उर्दू वालों ने 'गूँगे का गुड़ का मतलब 'गूँगे का दिया हुआ गुड़' समझा है और इसी अर्थ में इसका प्रयोग भी किया है । ऐसा प्रयोग अशुद्ध है, जैसा हिंदी कवियों के उदाहरणों से स्पष्ट है । गूँगे का सपना होना = दे॰ गूँगे का गुड़ होना' ।