गोड़
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]गोड़ † संज्ञा पुं॰ [सं॰ गम, गो]
१. पैर । पावँ । उ॰—(क) गोड़ न मूड़ न प्राण अधारा । तामे भरमि रहा संसारा ।—कबीर (शब्द॰) । (ख) मकर महीधव सो माखि कै मतंगज को ग्रस्यो गाँसि गाढ़ो गोड़े गैयर चिकारयो है ।—रघुराज (शब्द॰) । मुहा॰—गोड़ भरना =(१) पैर में महावर लगाना । (२) ब्याह की४ एक रसम जिसमें वर की माता या चाची उसे गोद में लेकर मंडप में बैठती है और नाइन उसके पैर में महावर लगाती है ।
२. भूजों की एक जाति ।
३. जहाज के लंगर की फाल ।—(लश॰) ।
गोड़ पु संज्ञा पुं॰ [हिं॰ गौढ़] दे॰ 'गौड़' । उ॰—खइराडया आया खुरसाँण गोड चढ्या गजकेसरी कछवाह कहुँ नीरवाण ।—बी॰ रासो, पृ॰ १७ ।