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गोरख

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

गोरख संज्ञा पुं॰ [हिं॰] दे॰ 'गोरखनाथ' ।

गोरख प्रमली संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ गोरख + इमली] एक प्रकार का बहुत बड़ा पेड़ जो मध्य तथा दक्षिण भारत में अधिकता से होता है । विशेष—इसका तना बहुत मोटा होता है और इसकी डालियाँ दूर दूर तक फैलती हैं । यह वृक्ष बहुत दिनों तक जीवित भी रहता है । इसकी लकड़ी कमजोर होती है और उसमें जल्दी कीडे़ लग जाते हैं । इसकी छाल बहुत मुलायम होती है और उसके रेशे से चटाइयाँ, रस्से और कहीं कपडे भी बनाए जाते हैं । सावन भादों में यह पेड़ फूलता है और इसमें कमल के आकार के बडे फूल लगते हैं । इसके फूलों में से पके हुए संतरे की सी सुगंध आती है । इसके हरएक सींके में सेमल की तरह के पाँच पाँच पत्ते होते हैं । अफ्रीका के निवासी इसके पत्तों का चूर्ण बनाकर भोजन के साथ खाते हैं । उनके कथनानुसार इसके खाने से पसीना नहीं मालूम होता और गर्मी कम मालूम होती है । इसमें छोटी लौकी के आकार के फल लगते हैं जिनके बीज दवा के काम आते हैं । ये बीज कई प्रकार के ज्वरों के लिये बहुत उपयोगी होते हैं और इनका बहुत बडा व्यापार होता है । वैद्यक के अनुसार यह मधुर, शीतल और दाह, वमन, पित्त, अतिसार तथा ज्वर को दूर करनेवाली है । इसे कल्पवृक्ष भी कहते हैं । वि॰ दे॰ 'कल्पवृक्ष'—२ ।