ग्रहणी

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

ग्रहणी ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰] दे॰

१. सुश्रुत के अनुसार उदर में पक्वाशय और आमाशय के बीच की एक नाड़ी जो अग्नि या पित्त का प्रधान आधार है ।

२. इस नाड़ी के दूषित होने से उत्पन्न एक प्रकार का रोग जिसमें खाया हुआ पदार्थ पचता नहीं और ज्यों का त्यों दस्त की राह से निकल जाता है । वि॰ दे॰ 'संग्रहणी' । यौ॰—ग्रहणीहर = लौंग ।

ग्रहणी पु ^२ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ ग्रहण] ग्रहण करने की क्रिया । ग्रहण । उ॰—ग्रहणो मैं सिवनेम सहणी में अहीस ।— रा॰ रू॰, पृ॰ ९७ ।