ग्राम

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

ग्राम ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. छोटी बस्ती । गाँव ।

२. मनुष्यों के रहने का स्थान । बस्ती । आबादी । जनपद ।

३. समूह । ढेर । उ॰—सिगरे राज समाज के कहे गोत्रगुण ग्राम । देश सुभाव प्रभाव अरु कुल बल विक्रय नाम ।—केशव (शब्द॰) । विशेष—इस अर्थ में यह शब्द केवल यौगिक शब्दों के अंत से आता है । जैसे,—गुणग्राम ।

४. शिव ।

५. जाति (को॰) ।

६. क्रम से सात स्वरों का समूह । सप्तक (संगीत) । विशेष—संगीत में सुभीते के लिये षड़ज, मध्यम और गांधार नामक तीन ग्राम निश्चित कर लिए गए हैं, जिन्हें क्रमशः नंद्यावर्त्त, सुभद्र और जीमूत भी कहते हैं और जिनके देवता एक क्रम से ब्रह्मा, विष्णु और शीव हैं । प्रत्येक ग्राम मे ं सात सात मूर्च्छनाएँ होती हैं । सा (षड़ज) से आरंभ करके (सा रे ग म प ध नि) जो सात स्वर हों, उनके समूह को षड़ज ग्राम; म (मध्यम) से आरभ करके (म प ध नि सा रे ग) जो सात स्वर हों, उनके समूह को मध्यम ग्राम और इसी प्रकार गा (गांधार) या प (पंचम) से आरंभ करके जो स्वर हों, उनके समूह को गांधार अथवा पंचम (जैसी अवस्था हो) ग्राम मानते हैं । इनमें से पहले दो ग्रामों का व्यवहार तो इसी लोक में मनुष्यों द्वारा होता है; पर तीसरे ग्राम का व्यवहार स्वर्गलोक में नारद करते हैं । वास्तव में तीसरा ग्राम होता भी बहुत ऊँचा है और उसके स्वर केवल सितार सारंगी, हारमोनिम आदि बाजों में ही निकल सकते हैं, मनुष्यों कि गले से नहीं ।

ग्राम ^२ संज्ञा पुं॰ [अं॰] एक अंग्रेजी तौल ।