घालना

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

घालना † क्रि॰ स॰ [सं॰ घटन, प्रा॰ घडन या घलन]

१. किसी वस्तु के भीतर या ऊपर रखना । डालना । रखना । उ॰— (क) को अस हाथ सिंह मुख घालै । को यह बात पिता सों चालै ।—जायसी (शब्द॰) । (ख) सो भुजबल राख्यो उर घाली । जीतेहु सहसबाहु बलि बाली ।—तुलसी (शब्द॰) । (ग) स्यंदन घालि तुरत गृह आना । —तुलसी (शब्द॰) ।

२. फेंकना । चलाना । छोड़ना । उ॰—(क) जिन नैनन बसत हैं रसनिधि मोहनलाल । तिनमें क्यों घालत अरी तैं भरि मुठ गुलाल ।—रसनिधि (शब्द॰) । (ख) पहिल घाव घालौ तुम आछे । हिये हौस रहि जैहे पाछे ।—लाल (शब्द॰) ।

३. कर डालना । उ॰—केहि के बल घालेसि बन खीसा—तुलसी (शब्द॰) ।