घीकुआर

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

घीकुआर संज्ञा पुं॰ [सं॰ घृतकुमारी] एक प्रसिद्ध क्षुप जो खीरी रेतीली जमीन पर अथवा नदियों के किनारे अधिकता से होता है । विशेष—इसके पत्ते ३-४ अंगुल चौड़े, हाथ डेढ़ हाथ लंबे, दोनों किनारों पर अनीदार, बहुत मोटे और गूदेदार होते हैं जिनके अंदर हरे रंग का और लसीला गूदा होता है । यह गूदा बहुत पुष्टिकारक समझा जाता है और कई रोगों में व्यवहृत होता है । एलुआ इसी के रस से बनाया जाता है । वैद्यक में यह शीतल, कडुआ, कफनाशक और पित्त, खाँसी, विष, श्वास तथा कुष्ठ आदि को दूर करनेवाला माना गया है । पत्तों के बीच से एक मोटा डंडा या मूसला निकलता है जो मधुर और कृमि तथा पित्त नाशक कहा गया है । इसी डंडे में लाल फूल निकलता है जो भारी होता है और वात, पित्त तथा कृमिॉ का नाशक बतलाया गया है ।