घुँघरू

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

घुँघरू संज्ञा पुं॰ [अनु॰ घुन् घुन्+स॰ रव या रू]

१. किसी धातु की बनी हुई गोल और पोली गुरिया किसके अंदर 'घन घन' बजने के लिये कंकड़ भर देते हैं । चौरासी । मंजीर । मुहा॰—घुँघरू सा लदना=शरीर में बहुत अधिक फुंसियाँ, चेचक या छाले आदि निकलना ।

२. ऐसी गुरियों का बना हुआ पैर का गहना जो बच्चे या नाचने— वाले पहनते हैं । मुहा॰—घुंघरू बाँधना=(१) नाचने में चेला करना । (२) नाचने के लिये तैयार होना ।

३. गले का वह घुर घुर शब्द जो मरते समय कफ छेकने के कारण निकलता है । घटका । घटुका । मुहा॰—घुघरू बोलना=घर्रा लगना । घटका लगना । मरते समय कफ छंकना ।

४. वह कोशजिसके अंदर चने का दाना रहता है । बूट के ऊपर की खोल ।

५. सनई का फल जिसके अंदर बीज रहते हैं । विशेष—सूखने पर ये सनई के फल बजते हैं जिसके कारण लड़के इन्हें खेल के लिये पाँव में बाँधते हैं । संस्कृत एवं प्राकृतिक गाथाओं में भी इसके प्रयोग मिलते हैं; यथा—'शणफल बज्जुन पयसा' ।—पृ॰ रा॰, १ ।

घुँघरू मोतिया संज्ञा पुं॰ [हिं॰ घुँघरू+मोतिया] एक प्रकार का मोतिया बेला ।

घुँघरू † संज्ञा पुं॰ [हिं॰] दे॰ 'घुँघरू' । उ॰—गोविंददास घूँघरू बाँधि कै श्री नवनीत प्रिय जी आगें नृत्य करें । दो सौ बावन॰, भा॰ १, पृ॰ २८९ ।