चंचरी
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]चंचरी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ चञ्चरकी]
१. भ्रमरी । भँवरी ।
२. चाँचरि । होली में गाने का एक गीत ।
३. हरिप्रिया छंद । इसी को भिखारीदा अपने पिंगल में 'चंचरी' कहते है । इसके प्रत्येक पद में १२ + १२ + १२ + १० के विराम से ४६ मात्राएँ होती हैं । अंत में एक गुरु होता है । जैसे,—सुरज गुन दिसि सजाय, अंतै गुरु चरण ध्याय, चित्त दै हरि प्रियहिं, कृष्ण कृष्ण गावो ।
४. एक वर्णवृत्त का नाम जिसके प्रत्येक चरण में र स ज ज भ र (/?/) होते हैं । इसे 'चंचरा', 'चंचली' और 'विवुधप्रिया' भी कहते हैं । जैसे,—री सजै जु भरी हरी नित वाणि तू । औ सदा लहमान संत समाज में जग माँहि तू । भूलि के जु बिसारि रामहिं आन को गुण गाइहै । चंपकै सम ना हरी जन चंचरी मन भाइहै ।
५. एक मांत्रिक छंद जिसके प्रत्येक पद में २६ मात्राएँ होती हैं । जैसे,—सेतु सीतहि शोभना दरसाइ पंचवटी गए । पाँय लागि अगस्त्य के पुनि अत्रि पै ते विदा भए । चित्रकूट विलोकि कै कै तबही प्रयाग बिलोकियो । भरद्राज बसै जहाँ जिनते न पावन है वियो ।
चंचरी ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ चञ्चरिन्] भौंरा [को॰] ।