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चकना

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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चकना पु क्रि॰ अ॰ [सं॰ चक(=भ्रांत)]

१. चकित होना । भोचक्का । होना । चकपकाना । विस्मित होना । उ॰—(क) चित्त चितेरी रही चकि सी जकि एक तें ह्वै गइ द्वै तस्वीर सी ।— बेनीप्रवीन (शब्द॰) । (ख) जदुबंसी धनि धनि मुख कहहीं । हरि की रीति देखि चकि रहहीं ।—रघुराज (शब्द॰) ।

२. चौंकन्ना । आशंकायुक्त होना । उ॰—(क) चित्र लिये नल को कर मैं । भवन अकेली ह्वै भरमैं । संग सखीनंहु सों चकि कै । यौ समता मिलवै तकि कै ।—गुमान (शब्द॰) । (ख) फूलत फूल गुलाबन के चटकाहटि चौंकि चकी चपला सी ।—पद्माकर (शब्द॰) । (ग) उचकी लची चौंकी चकी मुख फेरि तरेरि बड़ी आँखियाँ चितई ।—बेनी (शब्द॰) ।