चक्र

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

चक्र संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. पहिया । चाका ।

२. कुम्हार का चाक ।

३. चक्की । जाँता ।

४. तेल पेरने का कोल्हू ।

५. पहिए के आकार की कोई गोल वस्तु ।

६. लोहे के एक अस्त्र का नाम जो पहिए के आकार का होता है । विशेष—इसकी परिधि की धार बड़ी तीक्ष्ण होती है । शुक्रनीति के अनुसार चक्र तीन प्रकार का होता है—उत्तम, मध्यम और अधम । जिसमें आठ आर (आरे) हों वह उत्तम, जिसमें छह हों वह मध्यम, जिसमें चार हों वह अधम है । इसके अतिरिक्त तोल का भी हिसाब है । विस्तारभेद से १६ अंगुल का चक्र उत्तम माना गया है । प्राचीन काल में यह युद्ध के अवसर पर नचाकर फेंका जाता था । यह विष्णु भगवान् का विशेष अस्त्र माना जाता था । आजकल भी गुरु गोविंदसिंह के अनुयायी सिख अपने सिर के बालों में एक प्रकार का चक्र लपेटे रहते हैं । मुहा॰—चक्र गिरना या पड़ना=वज्रपात होना । विपत्ति आना । चक्र चलाना = जाल रचना । षड्यंत्र करना ।

७. पानी का भँवर ।

८. वातचक्र । बंवडर ।

९. समूह । समुदाय । मंडली ।

१०. दल । झुंड । सेना ।

११. एक प्रकार का व्यूह या सेना की स्थिति । दे॰ 'चक्रव्यूह' ।

१२. ग्रामों या नगरों का समूह । मंडल । प्रदेश । राज्य ।

१३. एक समूद्र से दूसरे समूद्र तक फैला हुआ प्रदेश । आसमुद्रांत भूमि । यौ॰—चक्रवर्ती

१४. चक्रवाक पक्षी । चकवा ।

१५. तगर का फूल । गुलचाँदनी ।

१६. योग के अनुसार मूलाधार स्वाधिष्ठान, मणिपुर आदि शरीरस्थ छह पद्म ।

१७. मंडलाकार घेरा । वृत । जैसे,— राशिचक्र ।

१८. रेखाओं से घिरे हुए गोल या चौखूँटे खाने जिनमें अंक, अक्षर, शब्द आदि लिखे हों । जैसे,—कुंडलीचक्र । विशेष—तंत्र में मंत्रों के उद्धार तथा शुभाशुभ विचार के लिये अनेक प्रकार के चक्रों का व्यवहार होता है । जैसे,—अकडम चक्र, अकथचक्र, कुलालचक्र आदि । रुद्रयामल आदि तंत्र ग्रंथों में महाचक्र, राजचक्र, दिव्यचक्र आदि अनेक चक्रों का उल्लेख है । मंत्र के उद्धार के लिये जो चक्र बनाया जाते हैं, उन्हें यंत्र कहते हैं ।

१९. हाथ की हथेली या पैर के तलवे में घूमी हुई महीन महीन रेखाओं का चिह्न जिनसे सामुद्रिक में अनेक प्रकार के शुभाशुभ फल निकाले जाते हैं ।

२०. फेरा । भ्रमण । घुमाव । चक्कर । जैसे,—कालचक्र के प्रभाव से सब बातें बदला करती हैं ।

२१. दिशा । प्रांत । उ॰—कहै पद्माकर चहौं तो चहूं चक्रन को चीरि डालौं पल में पलैया पैज पन हौं । पद्माकर (शब्द॰) ।

२२. एक वर्णवृत का नाम जिसके प्रत्येक चरण में क्रमशः एक भगण, तीन नगण और फिर लघु, गुरु होते हैं । जैसे—भौननि लगत न कतहुँ ठिकनवाँ । राम विमुख रहि सुख मिल कहवाँ ।

२३. धोखा । भुलावा । जाल । फरेब । यौ॰—चक्रधर = बाजीगर ।

२४. चक्रव्यूह ।

२५. सैनिकों द्वारा राइफल या बंदूक से एक साथ गोली चलाना । बाढ़ । राउंड ।

२६. एक विशेष पद (को॰) ।