चक्षु
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]चक्षु संज्ञा पुं॰ [सं॰ चक्षुष्]
१. दर्शनेंद्रिय । आँख । मुहा॰—चक्षु चार होना = दे॰ 'आँखें चार होना' । उ॰—कोई कुरंगलोचनी किसी नवयुवक से चक्षु चार होते ही ।—प्रेमघन॰, भाग २, पृ॰ ११९ ।
२. विष्णु पुराण में वर्णित अजमीढ वंशी एक राजा जिसके पिता का नाम पुरुजानु और पुत्र का नाम हर्यश्व था ।
३. एक नदी का नाम जिसे आजकल आक्सस या जेहूँ कहते हैं । विशेष—वेदों में इसी का नाम वंक्षुनद है । विष्णुपुराण में लिखा है कि गंगा जब ब्रह्मलोक से गिरी, तब चार नदियों के रूप में चार ओर प्रवाहित हुई । जो नदी केतुमाल पर्वत के बीच से होती हुई पश्चिम सागर में जाकर मिली, उसका नाम चक्षुस् हुआ ।
४. देखने की शक्ति (को॰) ।
५. प्रकाश या रोशनी (को॰) ।
६. कांति । तेज (को॰) ।