सामग्री पर जाएँ

चतुरस्र

विक्षनरी से


प्रकाशितकोशों से अर्थ

[सम्पादन]

शब्दसागर

[सम्पादन]

चतुरस्र संज्ञा पुं॰ [सं॰] एक प्रकार का तिताला ताल जिसमें क्रम से एक गुरु (गुरु की दो मात्राएँ), एक लघु (लघु की एक मात्रा), एक प्लुत (प्लुत की तीन मात्राएँ) होता है । इसका बोल यह है—थरिकुकु थाँ थाँ धिगदाँ । धिधि धिमि धिधि गन थों थों डे ।

२. नृत्य में एक प्रकार का हस्तका । ३ चतुर्भुज क्षेत्र (को॰) ।

४. ज्योतिष में चौथी या आठवीं राशी (को॰) ।

५. ब्रह्मसंतोष नामक केतु (को॰) ।

चतुरस्र वि॰

१. चतुष्कोण (माणिक्य की एक विशेषता) ।

२. सर्वांगीण [को॰] । यौ॰—चतुरस्र पांड़ित्य = सर्वतोमुखी ज्ञान या विद्वत्ता ।