चतुर्थी

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

चतुर्थी ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]

१. किसी पक्ष की चौथी तिथि । चौथ । विशेष—(क) इस तिथि की रात, और किसी किसी के मत से रात के पहले पहर में अध्ययन करना शास्त्रों में निषिद्ध बतलाया गया है । (ख) भाद्रपद शुक्ल चतुर्थीं को चंद्रमा के दर्शन करने का निषेध है । कहते हैं, उस दिन चंद्रमा के दर्शन करने से किसी प्रकार का मिथ्या कलंक या अपवाद आदि लगता है ।

२. वह विशिष्ट कर्म जो विवाह के चौथे दिन होता है और जिससे पहले वरवधू का संयोग नहीं हो सकता । गंगा प्रभृति नदियों और ग्रामदेवता आदि का पूजन इसी के अंतर्गत है ।

३. एक रसम जिसमें किसी प्रेतकर्म करनेवाले के यहाँ मुत्यु से चौथे दिन बिरादरी के लोग एकत्र होते हैं । चौथा ।

४. एक तांत्रिक मुद्रा ।

५. संस्कृत में व्याकरण में संप्रदान में लगनेवाली विभक्ति (को॰) ।

चतुर्थी ^२ संज्ञा पुं॰ तत्पुरुष समास का भेद जिसमें संप्रदान की विभक्ति लुप्त रहती है [को॰] ।

चतुर्थी क्रिया संज्ञा स्त्री॰ [सं॰] दे॰ 'चतुर्थी'—३ [को॰] ।

चतुर्थी तत्पुरुष संज्ञा पुं॰ [सं॰] दे॰ 'चतुर्थी ^२' ।