चपरी

विक्षनरी से


हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

चपरी पु क्रि॰ वि॰ [सं॰ चपल ] फुरती से । चपलता से । तेजी से जोर से । सहसा । एकबारगी । उ॰—(क) जीवन से जागी आगि चपरि चौगुनी लागि तुलसी बिलोकि मेघ चले मुँह मोरि कै ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) तहाँ दशरथ के समर्थ नाथ तुलसी को चपरि चढ़ायो चाप चंद्रमा ललाम को ।—तुलसी (शब्द॰) । (ग) राम चहत सिव चापहि चपरि चढ़ावन ।—तुलसी (शब्द॰) । (घ) चपरि चलेउ हय सुटुकि नृप हाँकि न होइ निबाहु ।—तुलसी (शब्द॰) । (च) कियो छुड़ापन विविध उपाई । चपरि गह्यो तुलसी बरियाई ।—रघुराज (शब्द॰) ।

चपरी संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ चपटा] एक कदन्न या घास जिसमें चिपटी चिपटी फलियाँ लगती हैं । खेसारी । चिपटैया ।