चांडाल

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

चांडाल संज्ञा पुं॰ [सं॰ चाण्डाल] [स्त्री॰ चांड़ाली, चांडालिन]

१. अत्यंत नीच जाति । डोम । श्वपच । विशेष—मनु के अनुसार चांडाल शूद्र पिता और व्राह्मणी माता से उत्पन्न हैं और अत्यंत नीचमाने गए हैं । उनकी बस्ती ग्राम के बाहर होनी चाहिए, भीतर नहीं । इनके लिये सोने चाँदी आदि के बरतनों का व्यवहार निषिद्ध है । ये जूठे बरतनों में भोजन कर सकते हैं । चाँदी सोने के बरतनों को छोड़ और किसी वरतन में यदि चाँडाल भोजन करले तो वह किसी प्रकार शुद्ध नहीं हो सकता । कुत्ते, गदहे आदि पालना, मुरदे का कफन आदि लेना, तथा इधर उधरफिरना इनका व्यवसाय ठहाराया गया है । यज्ञ और किसी धर्मानुष्ठान के समय इनके दर्शन का निषेध हैं । इन्हें अपने हाथ से भिक्षा तक न देनी चाहिए, सेवकों के हाथ से दिलवानी चाहिए । रात्रि के समय इन्हें बस्ती में नहीं निकलना चाहिए । प्राचीन काल में अपराधियों का वध इन्हीं के द्गारा कराया जाता था । लावा- रिसों की दाह आदि क्रिया भी वही करते थे । पर्या॰—श्ववपच । प्लव । मातंग । दिवारकोति । जनंगम निषाद । श्वपाक । अतेवासी । पुव्कस । निष्क ।

२. कुकर्मीं, दुष्ट, दुरात्मा, क्रूर या निष्टुरमनुष्य । पतित मनुष्य ।