चाणक्य
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]चाणक्य संज्ञा पुं॰ [सं॰] चणक ऋषि के वंश में उत्पन्न एक मुनि जिसके रचे हुए अनेक नीति ग्रंथ प्रचलित हैं । ये पाटलिपुत्र के सम्राट् चंद्रगुप्त के मंत्री थे और कौटिल्य नाम से भी प्रसिद्ध हैं । मुद्राराक्षस के अनुसार इनका असली नाम विष्णु गुप्त था । विशेष—विष्णुपुराण, भागवत आदि पुराणों तथा कथासरित्सागर आदि संस्कृत ग्रंथों में तो चाणक्य का नाम आया ही है, बौद्ध ग्रंथो में भी इसकी कथा बराबर मिलती है । बुद्धघोष की बनाई हुई विनयपिटक की टिका तथा महानाम स्थविर- रचित महावंश की टीका में चाणक्य का वृत्तांत दिया हुआ है । चाणक्य तक्षशिला (एक नगर जो रावलापिंडी के पास था) के निवासी थे । इनके जीवन की घटनाओं का विशेष संबंध मौर्य चंद्रगुप्त की राज्यप्राप्ति से है । ये उस समय के एक प्रसिद्ध विद्वान थे, इसमें कोई संदेह नहीं । चद्रगुप्त के साथ इनकी मैत्री की कथा इस प्रकार है । पाटलिपुत्र के राजा नंद या महानंद के यहाँ कोई यज्ञ था । उसमें ये भी गए और भोजन के समय एक प्रधान आसन पर जा बैठे । महाराज नंद ने इनका काला रंग देख इन्हें आसन पर से उठवा दिया । इसपर क्रुद्ध होकर इन्होंने यह प्रतिज्ञा की कि जबतक मैं नंदों का नाश न कर लूँगा तबतक अपनी शिखा न बाँधूँगा । उन्हीं दिनों राजकुमार चंद्रगुप्त राज्य से निकाले गए थे । चद्रगुप्त ने चाणक्य से मेल किया और दोनों आदमियों ने मिलकर म्लेच्छ राजा पर्वतक की सेना लेकर पटने पर चढ़ाई की और नंदों को युद्ध में परास्त करके मार डाला । नंदों के नाश के संबंध में कई प्रकार की कथाएँ हैं । कहीं लिखा है कि चाणक्य ने शकटार के यहाँ निर्माल्य भेजा जिसे छूते ही महानंद और उसके पुत्र मर गए । कहीं विषकन्या भेजने की कथा लिखी है । मुद्राराक्षस नाटक के देखेने से जाना जाता है कि नंदों का नाश करने पर भी महानंद के मंत्री राक्षस के कौशल और नीति के कारण चंद्रगुप्त को मगध का सिंहासन प्राप्त करने में बड़ी बड़ी कठिना- इयाँ पडीं । अंत में चाणक्य ने अपने नीतिबल से राक्षस को प्रसन्न किया और चंद्रगुप्त को मंत्री बनाया । बौद्ध ग्रंथो में भी इसी प्रकार की कथा है, केवल महानंद के स्थान पर धननंद है (दे॰ 'चंद्रगुप्त') । चाणक्य के शिष्य कामंदक ने अपने 'नीतिसार' नामक ग्रंथ में लिखा है कि विष्णुगुप्त चाणक्य ने अपने बुद्धिबल से अर्थशास्त्र रूपी महोदधि को मथकरनीतिशास्त्र रूपी अमृत निकाला । चाणक्य का 'अर्थशास्त्र' संस्कृत में राजनीति विषय पर एक विलक्षण ग्रंथ है । इसके नीति के श्लोक तो घर घर प्रचलित हैं । पीछे से लोगों ने इनके नीति ग्रंथों से घटा बढाकर वृद्धचाणक्य, लघुचाणक्य, बोधिचाणक्य आदि कई नीतिग्रंथ संकलित कर लिए । चाणक्य सब विषयों के पंडित थे । 'विष्णु गुप्त सिद्धांत' नामक इनका एक ज्योतिष का ग्रंथ भी मिलता है । कहते हैं, आयुर्वेद पर भी इनका लिखा वैद्यजीवन नाम का एक ग्रंथ है । न्याय भाष्यकार वात्स्यायन और चाणक्य को कोई कोई एक ही मानते हैं, पर यह भ्रम है जिसका मूल हैमचंद का यह श्लोक है वात्स्या- यन मल्लनागः, कौटिल्यश्चणकात्मजः । द्रामिलः पक्षिलस्वामी विष्णु गुप्तो/?/ङ्गु लश्च सः ।