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चातक

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चातक

प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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चातक संज्ञा पुं॰ [सं॰] [स्त्री॰ चातकी] एक पक्षी जो वर्षाकाल में बहुत बोलता है । पपीहा । वि॰ दे॰ 'पपीहा' । विशेष—इस पक्षी के विषय में प्रसिद्ध है कि यह नदी, तड़ाग आदि का संचित जल नहीं पीता, केवल बरसात हुआ पानी पीता है । कुछ लोग यहाँ तक कहते हैं कि यह केवल स्वाती नक्षत्र की बूँदों ही से अपनी प्यास बुझाता है । इसी से यह मेघ की ओर देखता रहता है और उससे जल की याचना करता है । इस प्रवाद को कवि लोग अपनी कविता में बहुत लाए हैं । तुलसीदास जी ने तो अपनी सतसई में इसी चातक को लेकर न जाने कितनी सुंदर उक्तियाँ कही हैं । पर्या॰—स्तोकक । सारंग । मेघजीवन । तोकक । यौ॰—चातकनंदवर्धन = (१) मेघ । बादल । (२) वर्षाकाल ।