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चारी

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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चारी ^१ वि॰ [सं॰ चारिन्] [वि॰ स्त्री॰ चारिणी]

१. चलनेवाला । जैसे, — आकाशचारी ।

२. आचरण करनेवाला । व्यवहार करनेवाला । जैसे, स्वेच्छाचारी । विशेष— इस शब्द का प्रयोग हिंदी में प्रायः समास में ही होता है ।

चारी ^२ संज्ञा पुं॰

१. पदाति सैन्य । पैदल सिपाही ।

२. संचारी भाव ।

चारी ^३ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰] नृत्य का एक अंग । विशेष— श्रृंगार आदि रसों का उद्दीपन करनेवाली मधुर गति को चारी कहते हैं । किसी किसी के मत से एक या दो पैरों से नाचने का ही नाम चारी है । चारी के दो भेद हैं— एक भूचारी, दूसरा आकाशचारी । भूचारी २६ प्रकार की होती है । यथा— समनखा, नूपुरबिद्धा, तिर्यङमुखी, सरला, कातरा, कवीरा, विश्लिष्ट, रथचक्रिका, पांचिरेतिका, तलदर्शनी, गज- हस्तिका, परावृत्ततला, चारुताड़िता, अर्द्ध मंडला, स्तंभक्रीडनका, हरिणत्रासिका चारुरेचिका, तलोर्द्वत्ता, संचारिता, स्फूरिका, लघितजंघा, संघटिता, मदालशा, उत्कुंचिता, अतितिर्यककु चिंता, और अपकु चिंता । मतांतर से भूचारी १६ प्रकार की होती है — समपादस्थिता, विद्धा, शकवर्द्धिका, बिकाधा, ताड़िता, आबद्धा, एड़का, क्रीडिता, उरुवृत्ता, द्वंदिता, जनिता, स्पंदिता, स्पदितावती, समतन्वी, समोत्सारितघट्टिता और उच्छृवंदिता । आकाशचारी १६ प्रकार की होती हैं — विपेक्षा, अधरी, अघ्रिता डिता, भ्रमरी, पुरुःक्षेपा, सूचिका, अपक्षेपा, जंघापती, विद्धा, हरिणप्लुता, उरुजंघांदोलिता, जंघा, जंघनिका, विद्युत्कांता, भ्रमरिका और दंडपार्श्र्वा । मतांतर से—विभ्रांता, अतिक्राता, अपक्राता, पार्श्वक्रातिका, उदर्ध्वजानु, दोलोदवृत्ता, पादोदवृत्ता, नुपुरपादिका, भुजंगभासिका, शिप्ता, आविद्धा, ताला, सूचिका, विद्युत्क्रांता, भ्रमरिका और दंडपाटा ।