चालुक्य

विक्षनरी से


हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

चालुक्य संज्ञा [सं॰] सं॰ दक्षिण का एक अत्यंत प्रवल और प्रतापी राजवंश जिसके शक संवत् ४११ से लेकर ईसा की १२ वीं शताब्दी तक राज्य किया । विशेष—विल्हण के विक्रमांकचरित् में लिखा है कि चालुक्य वंश का आदिपुरुष ब्रह्मा के चुलुक (चूल्लू) से उत्पन्न हुआ था । पर चालुक्य नाम का यह कारण केवल कविकल्पित ही है । कई ताम्रपत्रों में लिखा पाया गया है कि चालुक्य चंद्रवंशी थे और पहले अयोध्या में राज्य करते थे । विजयादित्य नाम के एक राजा ने दक्षिण पर चढ़ाई की और वह वहीं त्रिलोचन पल्लव के हाथ से मारा गया । उसकी गर्भवती रानी ने अपने कुलपुरोहित विष्णुभट्ट सोमयाजी के साथ मूड़िवेमु नामक स्थान में आश्रय ग्रहण किया । वहीं उसे विष्णुवर्धन नामक पुत्र उत्पन्न हुआ जिसने गंग और कादंब राजाओं को परास्त करके दक्षिण में अपना राज्य बनाया । विष्णुवर्धन का पुत्र पुलिकेशी (प्रथम) हुआ जिसने पल्लवों से वातापी नगरी (आजकल की आदामी) को जीतकर उसे अपनी राजधानी बनाया । पुलिकेशी (प्रथम) शक ४११ में सिंहासन पर बैठा । पुलिकेशी (प्रथम) का पुत्र किर्तिवर्मा हुआ । किर्तिवर्मा के पुत्र छोटे थे इससे किर्तिवर्मा के मृत्यु के उपरांत उसके छोटे भाई मंगलीश गद्दी पर बैठे । पर जब किर्तिवर्मा का जेठा लड़का सत्याश्रय बड़ा हुआ तब मंगलीश ने राज्य उसके हवाले कर दिया । वह पुलिकेशी द्वितीय के नाम से शक ५३१ में सिंहासन पर बैठा और उसने मालवा, गुजरात, महाराष्ट्र, कोंकण, काँची, आदि को अपने राज्य में मिलाया । यह बड़ा प्रतापी राजा हुआ । समस्त उत्तरीय भारत में अपना साम्राज्य स्थापित करनेवाला कन्नौज के महाराज हर्षवर्धन तक ने दक्षिण पर चढ़ाई करके इस राजा से हार खाई । चीनी यात्री हुएनसांग ने इस राज का वर्णन किया है । ऐसा भी प्रसिद्ध है की फारस के बादशाह खूसरो (दूसरा) से इसका व्यवहार था, तरह तरह की भेंट लेकर दूत आते जाते थे । पुलिकेशी के उपरांत चंद्रादित्य, आदित्यवर्मा, विक्रमादित्य क्रम से राजा हुए । शक ६०१ में विनयादित्य गद्यी पर बैठा । यह भी प्रतापी राजा हुआ और शक ६१८ तक सिंहासन पर रहा । शक ६७८ में इस वंश का प्रताप मंद पड़ गया, बहुत से प्रदेश राज्य से निकल गए । अंत में विक्रमादित्य (चतुर्थ) के पुत्र तैल (द्वितीय) ने फिर राज्य का उद्धार किया और चालुक्य वंश का प्रताप चमकाया । इस राजा ने प्रबल राष्ट्रकूटराज का दमन किया । शक ८९१ में महाप्रतापी त्रिभुवनमल्ल विक्रमादित्य (छठा) के नाम से राजसिंहासन पर बैठा और इसने चालुक्य विक्रमवर्ष नाम का संवत् चलाया । इस राजा के समय के अनेक ताम्रपत्र मिलते हैं । विल्हण कवि ने इसी राजा को लक्ष्य करके विक्रमांकदेवचरित् नामक काव्य लिखा है । इस राजा के उपरांत थोडे़ दिनों तक तो चालुक्य वंश का प्रताप अखंड रहा पर पीछे घटने लगा । शक ११११ तक वीर सोमेश्वर ने किसी प्रकार राज्य बचाया, पर अंत में मैसूर के हयशाल वंश के प्रबल होने पर वह धीरे धीरे हाथ से निकलने लगा । इस वंश की एक शाखा गुजरात में और एक शाखा दक्षिण के पूर्वी प्रांत में भी राज्य करती थी ।