चिकना
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]चिकना वि॰ [सं॰ चिक्कण] [वि॰ स्त्री॰ चिकनी]
१. जो छूने में खुरदार न हो । जो ऊबड़ खाबड़ न हो । जिसपर उँगली फेरने से कहीं उभाड़ आदि न मालूम हो । जो साफ और बराबर हो । जैसे,—चिकनी चौकी, चिकनी मेज ।
२. जिसपर सरकने में कुछ रुकावट न जान पड़े । जैसे,—यहाँ की मिट्टी बड़ी चिकनी है, पैर फिसल जायगा । मुहा॰—चिकना देख फिसल पड़ना—केवल सौंदर्य या धन देखकर रीझ जाना । धन या रूप पर लुभा जाना ।
३. जिसमें रुखाई न हो । जिसमें तेल आदि का गीलापन हो । जिसमें तेल लगा हो । स्निग्ध । तेलिया । तलौंस । मुहा॰—चिकना घड़ा = (१) वह जिसपर अच्छी बातों का कुछ असर म पड़े । ओछा । निर्लज्ज । बेहया । (२) जिसके पेट में कोई बात न पचे । क्षुद्र स्वभाव का । चिकने घड़ पर पानी पड़ना = किसी पर अच्छी बात का प्रभाव न पड़ना ।
४. साफ सुथरा । संवारा हुआ । जैसे,—तुम्हारा चिकना मुहँ देखकर कोई रुपया नहीं दिए देता । मुहा॰—चिकना चुपड़ा = बना ठना । छैल चिकनियाँ । सँवार सिंगार किए हुए । चिकनी चुपड़ी = दे॰ 'चिकनी चुपड़ी बातें' । चिकनी चुपड़ी बातें = मीठी बातें जो किसी के प्रसन्न करने, बहकाने या धोखा देने के लिये कही जायँ । बनावटी स्नेह से भरी बातें । कृक्त्रिम मधुर भाषण । जैसे,—उनकी चिकनी चुपड़ी बातों में मत आना । चिकना मुँह = सुंदर और सँवारा हुआ चेहरा । चिकने मुँह का ठग = ऐसा धूर्त जो देखने में औ र बातचीत से भलामानुस जान पड़ता हो । वंचक ।
५. चिकनी चुपड़ी बातें कहनेवाला । केवल दूसरों को प्रसन्न करने के लिये मीठी बातें कहनेवाला । लप्पो चप्पो करनेवाला । चाटुकार । खुशामदी ।
६. स्नेह । अनुरागी । प्रेमी । उ॰— जे नर रूखे विषय रस, चिकने राम सनेह । तुलसी ते प्रिय राम को कानन बसहिं कि गेह ।—तुलसी ग्रं॰, पृ॰ १०८ ।
चिकना ^२ संज्ञा पुं॰ तेल, घी, चरबी आदि चिकने पदार्थ । जैसे, इसमें चिकना कम देना ।