चित्रगुप्त

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

चित्रगुप्त संज्ञा पुं॰ [सं॰] चौदह यमराजों में से एक जो प्राणियों के पाप और पुण्य का लेखा रखते हैं । विशेष—चित्रगुप्त के संबंध में पद्मपुराण, गुरुणपुराण, भविष्यपुराण आदि पुराणों में कथाएँ मिलती हैं । स्कंदपुराण के प्रभासखंड में लिखा है कि चित्र नाम के कोई राजा थे, जो हिसाब किताब रखने में बड़े दक्ष थे । यमराज ने चाहा कि इन्हें अपने यहाँ लेखा रखने के लिये ले जाँय । अत: एक दिन जब राजा नदी में स्नान करने गए, तब यमराज ने उन्हें उठा मँगाया और अपना सहायक बनाया । इसपर राजा की एक बहिन अत्यंत दुखी हुई और चित्रपथा नाम की नदी होकर चित्र को ढूँढ़ने समुद्र की ओर गई । भविष्यपुराण में लिखा है कि जब ब्रह्मा सृष्टि बनाकर ध्यान में मग्न हुए तब उनके शरीर से एक विचित्रवर्ण पुरुष कलम दवात हाथ में लिए उत्पन्न हुआ । जब ब्रह्मा का ध्यान भंग हुआ तब उस पुरुष ने हाथ जोड़कर कहा—'महाराज ! मेरा नाम और काम बताइए' ! ब्रह्मा जी ने संतुष्ट होकर कहा—'तुम हमारे शरीर से उत्पन्न हुए हो; इसलिये तुम कायस्थ हुए और तुम्हारा नाम चित्रगुप्त हुआ । तुम प्रणियों के पाप पुण्य का लेखा रखने के लिये यमराज के यहाँ रहो' । भट्ट, नागर, सेनक, गौड़, श्रीवास्तव, माथुर, अहिष्ठान, शैकसेना और अंबष्ठ ये चित्रगुप्त के पुत्र हुए । यह कथा पीछे की गढ़ी हुई जान पड़ती है; क्योंकि ऊपर जो नाम दिए है, वे प्राय: देशभेद सूचक हैं । गरुडपुराण के चित्रकल्प में तो लिखा है कि यमपुर के पास ही एक चित्रगुप्तपुर है, जहाँ चित्रगुप्त के अधीनस्थ कायस्थ लोग बराबर काम किया करते हैं । बिहार, उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश के सब कायस्थ अपने को चित्रगुप्त के वंशज बतलाते हैं । यमद्वितीया के दिन कायस्थ लोग चित्रगुप्त और कलम दावात की पूजा करते हैं ।