चुंबक

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चुंबक

हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

चुंबक संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. वह जो चुंबन करे ।

२. कामुक । कामी ।

३. धूर्त मनुष्य ।

४. ग्रंथों को केवल इधर उधर उलटनेवाला । विषय को अच्छी तरह न समझनेवाला ।

५. पानी भरते समय घडे के मुँह पर बँधा हुआ फंदा । फाँस ।

६. एक प्रकार का पत्थर या धातु जिसमें लोहे को अपनी ओर आकर्षित करने की शक्ति होती है ।

विशेष—चुंबक दो प्रकार का होता है — एक प्रकृतिक दूसरा कृत्रिम । प्राकृतिक चुंबक एक प्रकार का लोहा मिला पत्थर होता है जो बहुत कम मिलता है । इससे कृत्रिम या बनावटी चुंबक ही देखने में अधिक आता है जो या तो घोड़े की नाल के आकार का होता है (नाल चुंबक) या सीधी छड के आकार का (छड़ चुंबक)। यदि चुंबक की छड़ को लोहे के चूरे के ढेर में डालें तो दिखाई पड़ेगा कि लोहे का चूरा उस छड़ में यहाँ से बहाँ तक बराबर नहीं लिपटता बल्कि दोनों छोरों पर सबसे अधिक लिपटता है। इन दोनों छोरों को आकर्षण प्रांत (या, ध्रुव) कहते हैं। कभी-कभी किसी छड़ के आकर्षण प्रांत दो से अधिक होते हैं। यदि किसी चुंबक-शलाका को उसके मध्यभाग (मध्याकर्षण केंद्र) पर से ऐसा ठहरावें कि वह चारों ओर घूम सके तो वह घूमकर उत्तर-दक्खिन रहेगी, अर्थात् उसका एक सिरा उत्तर की ओर और दूसरा दक्खिन की ओर रहेगा । ध्रुवदर्शक यंत्र में इसी प्रकार की शलाका लगी रहती है। पर ध्यान रखना चाहिए कि शलाका का यह उत्तर-दक्षिण हमारे भौगोलिक उत्तर-दक्षिण से ठीक ठीक मेल नहीं खाता। कहीं ठीक उत्तर से कई अंश पूर्व और कहीं पश्चिम की ओर होता है। इस अंतर को चुंबक प्रवृत्ति कहते हैं। इसे निकालने के लिये भी एक यंत्र होता है। यह चुंबक प्रवृत्ति पृथ्वी के भिन्न-भिन्न स्थानों में भिन्न- भिन्न होती है जिसके हिसाब किताब जहाजी रखते हैं। इसके अतिरिक्त किसी स्थान की यह चुंबकप्रवृत्ति सब काल में एक सी नहीं रहती, शताब्दियों के हेर-फेर के अनुकार कुछ मौलिक परिवर्तनों के कारण वह बदला करती है। किसी चुंबक का एक प्रांत दूसरे चुंबक के समान प्रांत को आकर्षित न करेगा, अर्थात् एक चुंबकशलाका का उत्तर प्रांत दूसरे चुंबक शलाका के उत्तर प्रांत को आकर्षित न करेगा, दक्षिण प्रांत को करेगा। जिस वस्तु को चुंबक के दोनों प्रांत आकर्षित करें वह स्थायी चुंबक नहीं है, केवल आकर्षित होने की शक्ति रखनेवाला है जैसे, साधारण लोहा आदि। स्थायी चुंबक के पास लोहे का टुकड़ा लाने से उसमें भी चुंबक का गुण आ जायगा, अर्थात् वह भी दूसरे लोहे को आकर्षित कर सकेगा। ऐसे चुंबक को स्थायी चुंबक कहते हैं। इस्पात में यद्यपि चुंबक शक्ति अधिक नही दिखाई देती, पर एक बार उसमें यदि चुंबक शक्ति आ जाती है, तो फिर वह जल्दी नहीं जाती। इसी से जितने कृतिम स्थायी चुंबक मिलते हैं, वे इस्पात ही के होते हैं। कृत्रिम चुंबक या तो चुंबक के संसर्ग द्वारा बनाए जाते हैं अथवा इस्पात की छड़ में विद्युत्प्रवाह दौड़ाने से। विद्युत्प्रवाह द्वारा बडे शक्तिशाली चुंबक तैयार होते हैं। अब यह निश्चित हुआ है कि चुंबकत्व, विद्युत का ही गुण है।