चौथी
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]चौथी ^१ वि॰ स्त्री॰ [हिं॰ चौथा का स्त्री॰] दे॰ 'चौथा' ।
चौथी ^२ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ चतुर्थी]
१. विवाह की एक रीति जो विवाह हो जाने पर चौथे दिन होती है । इसमें वर कन्या के हाथ के कंगन खोले जाते हैं । उ॰— चौथे दिवस रंगपति आए । विधि चौथी कर चार कराए ।—रघुराज (शब्द॰) । मुहै॰— चौथी का जोडा़ = वह जोडा़ या लँहगा जो वर के घर से आता है और जिसे दुलहिन चौथी के दिन पहनती है । चौथी खेलना = चौथे के दिन दूल्हा दूलहिन का एक दूसरे के ऊपर मेवे, फल आदि फेंकना । चौथी छूटना = चौथी के दिन वर कन्या के हाथों का कंगन खुलना । चौथी की रीति होना । चौथी छुडा़ना = चौथी की रीति करना ।
२. विवाह तथा गौने के चौथे दिन वधू के घऱ से वर के घर आनेवाला उपहार । उ॰— गौने के द्यौस छ सातक बीते न, चौथी कहा अबहीं चलि आई ।—मति॰ ग्रं॰, पृ॰ ३१६ । विशेष— चौथी भेजने की प्रथा दो प्रकार की है । एक के अनुसार विवाह ताथा गौना दोनों में चौथी भेजी जाती है । परंतु कहीं कहीं वधू के ससूराल रहने पर ही चौथी भेजी जाती है । यह चार दिनों के पूर्व या बाद भी भेजी जाती है ।
३. मुसलमानों की एक प्रथा, जिसमें शादी के बाद लड़का अपनी पत्नी से मिलने के लिये ससुराल आता है । इस प्रथा के अनुसार मिलन चौथी आने पर ही होता है ।
४. फसल की बाँट जिसमें जमींदार चौथाई लेता है और असामी तीन चौथाई । चौकुर ।