चौसर

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

चौसर संज्ञा पुं॰ [हिं॰ चौ (=चार)+सर (=बाजी) [अथवा सं॰ चतुस्सारि]

१. एक प्रकार का खेल जो विसात पर चार रगों की चार चार गोटियों और तीन पासों से दो मनुष्यों में खेला जाता है । चौपड़ । नर्दवाजी । विशेष—दोनों खेलनेवाले दो दो रंगों का आठ आठ गोटियाँ ले लेते हैं और बारी बारी से पासे फेंकते हैं । पासों के दाँव आने पर कुछ विशेष नियमों के अनुसार गोटियाँ चली जाती हैं । यह खेल जब पासों के बदले सात कौड़ियाँ फेंककर खेला जाता है, तब उसे पचासा कहते हैं । क्रि॰ प्र॰—खेलना ।

२. इस केल की बिसात जो प्राय: कपड़े की बना होती है । विशेष—इसका मध्य भाग थैली का सा होता है जिसमें खेल की समाप्ति पर गोटियाँ भरकर रखी जाती हैं । मध्य भाग के चारो सिरों की तरफ चार लंबे चौकोर टुकड़े सिले रहते हैं । जिनमें से हर एक की लंबाई में आठ आठ चौकोर खानों का तान तीन पंक्तियाँ होती हैं । क्रि॰ प्र॰—बिछाना । यौ॰—चौसर का बाजार = चौक बाजार । वह स्थान जिसके चारों ओर एक ही तरह के चार बाजार हों ।

चौसर ^२ संज्ञा पुं॰ [चतुरसृक्] चौलड़ी । चार लड़ों का हार उ॰—(क) चौसर हार अमोल गरे को देहु न मोरी माई ।*— सूर (शब्द॰) । (ख) और भाँति भए बए चौसर चंदन चंद । बिहारी (शब्द॰) ।