च्यवन

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

च्यवन संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. चूना । झरना । टपकना ।

२. एक ऋषि का नाम । विशेष—इनके पिता भृगु और माता पुलोमा थीं । इनके विषय में कथा है कि जब ये गर्भ में थे, तब एक राक्षस इनकी माता को अकेली पाकर हर ले जाना चाहता था । यह देख च्यवन गर्भ से निकल आए और उस राक्षस के उन्होंने अपने तेज से भस्म कर डाला । ये आपसे आप गर्भ से गिर पड़े थे, इसी से इनका नाम च्यवन पड़ा । एक बार एक सरोवर के किनारे तपस्या करते इन्हें इतने दिन हो गए कि इनका सारा शरीर वल्मोक ( बिमौट = दीमक की मिट्टी) से ढक गया, केवल चमकली हुई आँखें खुली रह गई । राजा शर्याति की कन्या सुकन्या ने इनकी आँखों को कोई अद्भुत वस्तु समझ उनमें काँटे चुभा दिए । इसपर च्यवन ऋषि ने क्रुद्ध होकर राजा शर्याति की सारी सेना और अनुचर वर्ग का मलमूत्र रोक दिया । राजा ने घबराकर च्यवन ऋषि से क्षमा माँगी और उनकी इच्छा देख अपनी कन्या सुकन्या का उनके साथ व्याह कर दिया । सुकन्या ने भी उस वृद्ध ऋषि से विवाह करने में कोई आपत्तिनहीं की । विवाह के पीछे एक दिन अश्विनीकुमार ने आकर सुकन्या से कहा—'बूढे पति को छोड़ दो, हम लोगों से विवाह कर लो' । पर जब वह किसी प्रकार समत व हुई, तब अश्विनीकुमारों मे प्रसन्न हेकर च्यवन ऋषि के बूढे से सुंदर युवक कर दिया । इसके बदले में च्यवन ऋषि ने राजा शर्याति के यज्ञ में अश्विनीकुमारों को सोमरस प्रदान किया । इंद्र ने इसपर आपत्ति की । जब इन्होंने नहीं माना, तब इद्र ने इसपर वज्र चलाया । च्यवन ऋषि ने इसपर क्रुद्ध होकर एक महा विकराल असुर उत्पन्न किया, जिसपर इंद्र भयभीत होकर इनकी शरण में आया ।