छत्रमहाराज

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

छत्रमहाराज संज्ञा पुं॰ [सं॰] बौद्धों के अनुसार आकाशस्थ चार दिक् पाल । विशेष—ये एक एक दिशाओं के अधिपति माने जाते हैं । इनके नाम और क्रम इस प्रकार हैं-प्रथम वीणाराज जो पूर्व दिशा के अधिपति हैं और हाथ में वीणा लिए रहते हैं; दूसरे खड़्गराज जो पश्चिम दिशा के अधिपति हैं और हाथ में खड़्ग लिए रहते हैं; तीसरे ध्बजराज जो उत्तर दिशा के अधिपति हैं और हाथ में ध्वाजा लिए रहते हैं; चौथे चैत्यराज जो दक्षिण दिशा के अधिपति हैं और हाथ में चैत्य धारण करते हैं । बौद्ध मंदिरों में प्रायः इनकी मूर्तियाँ रहती हैं ।