छलावा

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

छलावा संज्ञा पुं॰ [हिं॰ छल]

१. भूत प्रेत आदि की छाया जो एक बार दिखाई पड़कर फिर झट से अदृश्य हो जाती है । माया- दृश्य । उ॰—छलावे की तरह भासित हुए उस रूपक की 'छायादृश्य' (फैन्टज्मेटा) कहते हैं ।—चिंतामणि भा॰ २, पृ॰ २०० । मुहा॰—छलावा सा = बहुत चंचल । उ॰—कर तें छटकि छटी छलकि छलावा सी ।—हरिश्चंद्र (शब्द॰) ।

२. वह प्रकाश या लुक जो दलदलों के किनारे या जंगलों में रह रहकर दिखाई पड़ता और गायब हो जाता है । अगिया बैताल । उल्कामुख प्रेत । मुहा॰—छलावा खेलना = अगिया बैताल का इधर उधर दिखाई पड़ना । इधर उधर लुक फिरता हुआ दिखाई देना ।

३. चपल । चंचल । शोख ।

४. इंद्रजाला । जादू ।