छाग
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]छाग संज्ञा पुं॰ [सं॰] [स्त्री॰ छागी]
१. बकरा । विशेष—भावप्रकाश में इसके मांस को बलवर्धक और त्रिदोष— नाशक कहा है । भोजराज के युक्तिकल्पतरु में वर्णा के अनुसार इनका परीक्षण है तथा बृहत्संहिता के ६५ वै अध्याय में इनके शुभाशुभ लक्षण हैं । वि॰ दे॰ 'बकरा' ।
२. मेष राशि (को॰) ।
३. वह घोड़ा जो चल न सके । छिन्नगमन अश्व (को॰) ।
४. बकरी का दूध (को॰) ।
५. आहुति । पुरोडाश (को॰) ।