छानना
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]छानना ^१ क्रि॰ स॰ [सं॰ चालन या क्षारण]
१. किसी चूर्ण या तरल पदार्थ को महीन कपड़े या और किसी छेरदार वस्तु के पार निकालना जिसमें उसका कूड़ा करकट अथवा खुरदुरा या मोटा अंश निकल जाय । जैसे, पानी छानना, शरबत छानना, आटा छानना । संयो॰ क्रि॰—डालना ।—देना ।—लेना ।
२. मिली जुली वस्तुओं को एक दूसरे से अलग करना । भली और बुरी अथवा ग्राहय और त्याज्य वस्तुओं को परस्पर पृथक् करना । बिलगाना । उ॰—(क) जानि कै अनजान हुआ तत्व न लिया छानि ।—कबीर (शब्द॰) । (ख) मज्जन पानि कियो को सुरसरि कर्मनाश जल छानि ?—तुलसी (शब्द॰) ।
३. विवेक करना । अन्वीक्षण करना । जाँचना । पड़तालना ।
४. देखभाल करना । ढूँढ़ना । अनुसंधान करना । अन्वेषण करना । तलाश करना । खोज करना । जैसे,—सारा घर छान डाला, पर कागज न मिला । सयो॰ क्रि॰—डालना ।—मारना ।
५. भेदकर पार करना । किसी वस्तु को छेदकर इस पार से उस पार निकालना । उ॰—जब ही मारचो खौचि के तन मैं मूवा जानि । लागी चोट जो सबद की गई करेजे छानि ।— कबीर (शब्द॰) ।
६. नशा पीना । जैसे,—भाग छानना, शराब छानना ।
७. घृत या तेल आदि में काई खा द्यपदार्थ तलना ।
छानना ^२ क्रि॰ स॰ [सं॰ छन्दन, हिं॰ छावना]
१. रस्सी से बाँधना रस्सी आदि से कसना । जकड़ना । यौ॰—बाँधना छानना । जैसे, असबाबह बाँध छानकर पहले से रख दो ।
२. घोड़े, गदहे आदि के पैरों को रस्सी से जकड़कर बाँधना । उ॰—कबीर प्रगटहि रामकहि छाने राम न गाय । फूस के जोड़ी दूर करु बहुरि न लागै लाय ।—कबीर (शब्द॰) । (ख) बहि चलत भयो है मंद पौन । मनु गदहा को छान्यो पैर ।—भारतेंदु ग्रं॰ भा॰ २, पृ॰ ३७५ ।