सामग्री पर जाएँ

छाना

विक्षनरी से


प्रकाशितकोशों से अर्थ

[सम्पादन]

शब्दसागर

[सम्पादन]

छाना ^१ क्रि॰ स॰ [सं॰ छादन]

१. किसी वस्तु के सिरे या ऊपर के भाग पर कोई दूसरी वस्तु इस प्रकार रखना या फैलाना जिसमें वह पूरा ढक जाय । ऊपर से आच्छादित करना । संयो॰ क्रि॰—देना ।—लेना ।

२. पानी, धूप आदि से बचाव के लिये किसी स्थान के ऊपर कोई वस्तु तानना या फैलाना । जैसे,—छप्पर छाना, मंडप छाना, घर छाना । उ॰—जायसी (शब्द॰) । (ख) ऊपर राता चँदवा छावा । औ भुँइ सुरँग बिछाव बिछावा ।—जायसी (शब्द॰) । विशेष—इस क्रिया का प्रयोग आच्छादन और आच्छादित दोनों के लिये होता है । जैसे; छप्पर छाना, घर छाना । संयो॰ क्रि॰—डालना ।—देना ।—लेना ।

३. बिछाना । फैलाना । उ॰—मायके की सखी सों मँगाय फूल मालती के चादर सों ढाँपे छाय तोसक पहल में ।—रघुनाथ (शब्द॰) ।

४. शरण में लेना । रक्षा करना । उ॰—छत्रहिं अछत, अछत्रहिं छावा । दूसर नाहिं जो सरिवरि पावा ।— जायसी (शब्द॰) ।

छाना ^२ क्रि॰ अ॰

१. फैलना । पसरना । बिछजाना । भर जाना । जैसे, बादल छाना, हरियाली छाना । उ॰—(क) फूले कास सकल महि छाई ।—मानस, ४ ।१६ । (ख) बरषा काल मेघ नभ छाए । गर्जत लागत परम सुहाए ।—मानस, ४ ।१३ । (ग) कैसे धरों धीर वीर वीर पावस प्रबल आयो, छाई हरियाई छिति, नभ बग पाँती है ।—घासीराम (शब्द॰) । संयो॰ क्रि॰—उठना ।—जाना ।

२. डेरा डालना । बसना । रहना । टिकना । उ॰—(क) जब सुग्रीव भवन फिरि आए । राम प्रवर्षन गिरि पर छाए— मानस, ४ ।१२ । (रू) हम तौ इतनै ही सचु पायो । सुंदर स्याम कमलदल लोचन बहुरौ दर स दिखायौ । कहा भयो जो लोग कहत हैं कान्ह द्वारिका छायौ । सुनि कै बिरह दसा गोकुल की अति आतुर ह्वै घायौ ।—सूर॰ १० ।४२९६ ।

छाना ^३ वि॰ [सं॰ छन्न प्रा॰ छण] [वि॰ स्त्री॰ छानी] छिपा हुआ । गुप्त । उ॰—(क) सुंदर छाना क्यों रहै जग मैं जाहर होइ ।—सुंदर ग्रं॰, भा॰ २, पृ॰ ६८९ । (ख) कस्तूरी कर्पूर छिपावै कैसे छानी रहै सुबास ।—सुंदर ग्रं॰, भा॰ १, पृ॰ १५६ । यौ॰—छाने छाने=गुप्त रूप से । चुपकें । लुक छिपकर ।