छिटकना

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

छिटकना क्रि॰ अ॰ [सं॰ क्षिप्त, प्रा॰ खित्त, या सं॰ छित्त + करण]

१. इधर उधर पड़कर फैलना । चारों ओर बिखरना । छितराना । बगरना । संयो॰ क्रि॰—जाना ।

२. प्रकाश की किरणों का चारों ओर फैलना । प्रकाश का व्याप्त होना । उजाला छाना । जैसे, चाँदनी छिटकना, तारे छिटकना । उ॰—(क) जहँ जहँ बिहँसि सभा महँ हँसी । तहँ तहँ छिटकि जोति परगसी ।—जायसी (शब्द॰) । (ख) नखत सुमन नभ बिटप बौंड़िमनो छपा छिटकि छबि छाई ।— तुलसी ग्रं॰, पृ॰ २७७ ।

३. छटकना । दूर भागना । अलग हो जाना । उ॰—अब मत छिटको दूर, प्राणधन; देखो, होता है घन गर्जन ।—क्वासि, पृ॰ १८ ।